Jansatta Editorial: बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा को लेकर नीतिगत पहल करने की जरूरत
हमारे देश में सामान्य तौर पर बुजुर्गों की अहमियत है। सभी अपने घर के बड़े-बूढ़ों का खयाल रखने की कोशिश करते हैं। मगर उनकी सामाजिक सुरक्षा को लेकर अपेक्षित नीतिगत व्यवस्था की कमी रही है। खासकर ढलती उम्र में उनके स्वास्थ्य का खयाल रखने के लिए बीमा जैसी व्यवस्था में भी अभी तक उनके लिए पर्याप्त जगह नहीं रही है।
यह बेवजह नहीं है कि बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य बीमा के मामले में भारत एशिया-प्रशांत देशों में सबसे निचले पायदान पर है। ‘एजिंग वेल इन एशिया’ शीर्षक से गुरुवार को जारी एशियाई विकास बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत को तेजी से बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने और वृद्धि की रफ्तार बनाए रखने के लिए सबको स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाना वक्त का तकाजा है।
हालांकि गरीब लोगों को नकदी रहित स्वास्थ्य बीमा देने वाली आयुष्मान भारत जैसी योजना आने के बाद से बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाओं का विस्तार हुआ है, लेकिन इस ओर विशेष ध्यान देना समाज और देश के हित में है, क्योंकि अधिक उम्र वाले लोगों की मौजूदगी से मिलने वाला ‘लाभांश’ ज्यादा हो सकता है।
दरअसल, बदलती स्थितियों में बुजुर्गों को अपनी सेहत के लिहाज से ज्यादा संसाधनों की जरूरत पड़ती है। परिवार और समाज के अतिरिक्त व्यवस्थागत ढांचे में कुछ ऐसे नियम-कायदे हैं, जिनमें कई बार बुजुर्गों को या तो उपेक्षा झेलनी पड़ती या फिर उन्हें कमतर सुविधाएं मिलती हैं। मसलन, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीमा के मामले में देखें तो ज्यादा उम्र के लोगों के लिए जैसी शर्तें रखी गई हैं, उसमें उनका कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाता।
जबकि बढ़ती उम्र के साथ सेहत के लिहाज से कई ऐसी स्थितियां पैदा होती हैं, जिनमें उन्हें स्वास्थ्य बीमा की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। हालांकि अब बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण ने बुजुर्गों को भी बीमा खरीदने की सुविधा प्रदान कर दी है। पर स्वास्थ्य बीमा का खर्च कम और उनकी पहुंच में होना चाहिए। इस संदर्भ में देखें तो एशियाई बैंक विकास की ताजा रिपोर्ट नीतिगत स्तर पर ठोस पहल की जरूरत को रेखांकित करती है।