संपादकीय: परदेशी शिक्षा की राह में बाधा, वीजा नियमों में बदलाव से छात्रों के सामने नई समस्या
हर वर्ष भारत से लाखों विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में जाते हैं। कुछ समय पहले तक उन देशों में विदेशी छात्रों के लिए नियम-कायदों में ज्यादा सख्ती नहीं थी, इसलिए वहां जाने को लेकर एक आकर्षण रहा। मगर पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर बदले कूटनीतिक समीकरण और पढ़ाई, रोजगार तथा अन्य वजहों से दूसरे देशों में ठौर खोजने वालों की बढ़ती भीड़ ने जो नई परिस्थिति पैदा की, उसमें उच्च शिक्षा का आकर्षण माने जाने वाले कुछ देशों ने अपने यहां वीजा नियमों में तेजी से तब्दीली की है।
अच्छी शिक्षा के लिए बाहर जाने वालों पर असर
नतीजतन, अब उन देशों में जाकर पढ़ाई करने का सपना पालने वाले युवाओं और उनके परिवारों के लिए हालात सहज नहीं रहने वाले हैं। दरअसल, आस्ट्रेलिया ने अब अपनी वीजा नीति में कुछ ऐसे सख्त मानदंड तय किए हैं, जिससे पढ़ाई के मकसद से वहां जाने वाले भारतीय विद्यार्थियों के सामने एक नई मुश्किल खड़ी हो गई है। नई नीति का असर ऐसे विद्यार्थियों पर भी पड़ने वाला है, जो वहां केवल अच्छी शिक्षा के लिए जाना चाहते हैं।
दरअसल, आस्ट्रेलिया अपने वीजा नियमों को इसलिए सख्त बना रहा है कि वहां जाने वाले कई विदेशी युवा किसी शिक्षण संस्थान में दाखिला लेने के बाद वहीं कोई नौकरी भी शुरू कर देते हैं। इसे पढ़ाई के नाम पर नौकरी के लिए पिछले दरवाजे से प्रवेश के तौर पर देखा गया। इस तरह वहां जाने वालों की संख्या में जब ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई तो आस्ट्रेलिया ने वार्षिक प्रवासन की संख्या घटा कर आधा कर दिया।
इस वजह से दिसंबर 2022 के बाद एक वर्ष में भारतीय विद्यार्थियों को दिए जाने वाले वीजा में अड़तालीस फीसद की गिरावट देखी गई। यह एक बड़ा नीतिगत बदलाव है, जिसका नुकसान ऐसे भारतीय युवाओं के भविष्य पर भी पड़ेगा, जो आस्ट्रेलिया के किसी अच्छे शिक्षण संस्थान में दाखिला लेना चाहते हैं। निश्चित तौर पर यह निराशाजनक है, मगर इसके समांतर यह भी तथ्य है कि क्या भारत में शिक्षा का स्तर आस्ट्रेलिया या कनाडा जैसे देशों के बराबर नहीं हो सकता, ताकि हमारे विद्यार्थियों को किसी अन्य देश में जाने की नौबत ही न आए!