होमताजा खबरचुनावराष्ट्रीयमनोरंजनIPL 2024
राज्य | उत्तर प्रदेशउत्तराखंडझारखंडछत्तीसगढ़मध्य प्रदेशमहाराष्ट्रपंजाबनई दिल्लीराजस्थानबिहारहिमाचल प्रदेशहरियाणामणिपुरपश्चिम बंगालत्रिपुरातेलंगानाजम्मू-कश्मीरगुजरातकर्नाटकओडिशाआंध्र प्रदेशतमिलनाडु
वेब स्टोरीवीडियोआस्थालाइफस्टाइलहेल्थटेक्नोलॉजीएजुकेशनपॉडकास्टई-पेपर

Jansatta Editorial: भारत में कोरोना टीकाकरण सवालों के घेरे में, कंपनी ने कोर्ट में दुष्प्रभाव स्वीकारा

हमारे यहां टीकाकरण को लेकर शुरू में ही विवाद छिड़ गया था। तब विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि उचित प्रक्रिया से परीक्षण किए बगैर इसे व्यापक स्तर पर लगाया जा रहा है।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 09, 2024 07:57 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
Advertisement

एक बार फिर भारत में हुआ कोरोना टीकाकरण सवालों के घेरे में आ गया है। दरअसल, ब्रिटेन की कोरोना टीका बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने वहां के उच्च न्यायालय में स्वीकार किया है कि उसके टीके का दुर्लभ मामलों में दुष्प्रभाव हो सकता है। इससे खून के थक्के जमने, खून में प्लेटलेट घटने और इस वजह से दिल का दौरा पड़ने का खतरा हो सकता है।

अब कंपनी ने दुनिया भर से अपने टीके वापस मंगाने का फैसला किया है। इससे भारत में भी लोगों में एक प्रकार का खौफ पैदा हो गया है। दरअसल, भारत में लगाया गया कोविशील्ड टीका एस्ट्राजेनेका के फार्मूले पर ही तैयार किया गया, जिसका उत्पादन पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ने किया था। हमारे यहां इसके टीकाकरण को लेकर शुरू में ही विवाद छिड़ गया था। तब विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि उचित प्रक्रिया से परीक्षण किए बगैर इसे व्यापक स्तर पर लगाया जा रहा है।

Advertisement

मगर तब सरकार, तमाम चिकित्सा विशेषज्ञ, यहां तक कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने भी बार-बार लोगों को आश्वस्त किया था कि कोरोना के टीके पूरी तरह सुरक्षित हैं। मगर इस हकीकत से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि कोविशील्ड को चूंकि ब्रिटेन में मान्यता मिल चुकी थी, इसलिए भारत में उसे तीन के बजाय दो चरण में परीक्षण कराने के बाद ही मंजूरी दे दी गई थी।

टीकाकरण के बाद यहां भी कई लोगों ने शिकायत करनी शुरू कर दी थी कि उनके शरीर पर टीके का दुष्प्रभाव पड़ा है। पिछले साल जब देश में दिल का दौरा पड़ने के मामलों में उछाल दर्ज किया गया, उत्सवों में नाचते, कसरत करते या खेलते हुए अचानक लोगों के गिर कर मर जाने की घटनाएं बढ़ गईं, तो इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में सवाल भी पूछे गए।

तब स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि इस पर अलग-अलग संस्थाएं अध्ययन कर रही हैं और उनके नतीजे आने के बाद स्थिति स्पष्ट कर दी जाएगी। मगर अभी तक इससे जुड़े एक भी अध्ययन की रिपोर्ट सामने नहीं आ सकी है। अब भी चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी टीके का दुष्प्रभाव उसके लगाने के चार से छह हफ्तों में प्रकट हो जाते हैं। अब दो साल से अधिक समय बीत जाने के बाद ऐसा कोई खतरा नहीं रह गया है। मगर लोगों में इसके दुष्प्रभावों को लेकर जो भय पैदा हो गया है, उसके निराकरण की दरकार बनी हुई है।

यह ठीक है कि जिस तरह कोविड ने पांव पसारना शुरू किया था और उसकी चपेट में आकर लोगों की मौत हो रही थी, उस पर काबू पाने के तत्काल उपाय की जरूरत थी। ऐसे में कोविशील्ड और कोवैक्सीन के उत्पादन से काफी राहत मिली थी। मगर सरकार इस तथ्य से आंख नहीं चुरा सकती कि टीकाकरण में जल्दबाजी दिखाई गई और इन्हें लेने के लिए लोगों को बाध्य किया गया।

यह भी तथ्य है कि दुनिया का कोई भी टीका सौ फीसद सुरक्षित होने का दावा नहीं कर सकता, हर किसी का कोई न कोई दुष्प्रभाव होता ही है। मगर इस आधार पर कोविशील्ड और कोवैक्सीन को संदेह के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता। अभी तक सरकार कोरोना से हुई मौत के वास्तविक आंकड़े न जारी करने को लेकर सवालों से घिरी हुई है, अगर कोविशील्ड को लेकर भी उसने टालमटोल का रवैया अख्तियार किया, तो विवाद और बढ़ेगा ही।

Advertisement
Tags :
Jansatta Editorialjansatta epaper
विजुअल स्टोरीज
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।