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संपादकीय: डेयरियों में मिलावट का कारोबार और पशुओं को दवा देकर दूध का क्रूर उत्पादन

कभी-कभार दूध में मिलावट करने वालों के खिलाफ तो सख्ती होती देखी जाती है, मगर पशुओं को हानिकारक दवाएं देकर दूध में जो जहर घोला जा रहा है, उस पर अभी तक गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस संबंध में कड़ाई दिखाते हुए उचित ही संबंधित महकमों को सतर्क रहने को कहा है।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: May 06, 2024 14:13 IST
संपादकीय  डेयरियों में मिलावट का कारोबार और पशुओं को दवा देकर दूध का क्रूर उत्पादन
पशुओं के साथ क्रूरता पर हाईकोर्ट ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। (फाइल फोटो)
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जैसे-जैसे कृषि व्यवस्था यंत्र आधारित होती गई है, पशुपालन का मकसद शुद्ध रूप से व्यावसायिक होता गया है। दुग्ध उत्पादन एक बड़े कारोबार का रूप ले चुका है। खासकर शहरों में दूध और दुग्ध उत्पाद की लगातार बढ़ती मांग के मद्देनजर दुधारू पशुओं के पालन और दुग्ध उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाता है। हालांकि देश के ज्यादातर राज्यों ने सहकारी दुग्ध समितियां गठित कर दी हैं, कई कंपनियां भी थैली का दूध और दुग्ध उत्पाद बेचती हैं। मगर बहुत सारे लोग शुद्धता के आग्रहवश अपने मुहल्ले की डेयरी या दूधिया से दूध लेना बेहतर समझते हैं।

दवा से हार्मोंस तो बढ़ जाता है, लेकिन पशुओं की सेहत बिगड़ जाती है

इस तरह के दूध का कारोबार करने वालों के बारे में लंबे समय से मिलावट करने का तथ्य उजागर है। यहां तक कि नकली दूध का कारोबार भी चलता है। मगर अधिक से अधिक दूध उत्पादन की चाह में जिस तरह गाय-भैंसों और अन्य दुधारू पशुओं को दवा देकर उनका हार्मोन बढ़ाया जाता है, वह एक अलग त्रासद पक्ष है। दवा देकर हार्मोन बढ़ाने से पशुओं में दूध की मात्रा तो बढ़ जाती है, मगर उनकी सेहत पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव उनके लिए भयावह होता है। ऐसे पशु जब दूध देना बंद कर देते हैं, तो उन्हें अनेक तकलीफदेह बीमारियां घेर लेती हैं।

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अदालत ने आक्सीटोसिन उत्पादन-वितरण के स्रोत पता लगाने को कहा है

पशुओं को दवा देकर उनका हार्मोन बढ़ाने और अधिक से अधिक दूध खींचने को दिल्ली उच्च न्यायालय ने पशु क्रूरता माना है। अदालत ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे राजधानी की डेयरियों में हार्मोन पैदा करने के लिए आक्सीटोसिन नामक दवा के उपयोग का पता लगाएं और ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें। अदालत ने खुफिया विभाग से आक्सीटोसिन के उत्पादन और वितरण के स्रोतों की पहचान करने को भी कहा है। छिपी बात नहीं है कि शहरों में चलाई जाने वाली डेयरियों में दुधारू पशुओं को एक संसाधन की तरह रखा जाता है।

बहुत सारी डेयरियों में तो पशुओं के बैठने, घूमने-फिरने तक की पर्याप्त जगह नहीं होती। उनकी साफ-सफाई का भी उचित ध्यान नहीं दिया जाता। इसलिए अदालत ने यह भी कहा है कि डेयरियों में उचित जल निकासी, पशुओं के घूमने के लिए पर्याप्त खुली जगह, बायोगैस संयंत्र आदि सुनिश्चित कराए जाने चाहिए। डेयरियों को चरागाह वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित कराया जाना चाहिए। मगर दिल्ली जैसे महानगरों में ऐसी जगहें कहां उपलब्ध हो पाएंगी, देखने की बात है। जो डेयरी वाले इलाके थे, अब ज्यादातर में सघन रिहाइशी भवन खड़े हो गए हैं।

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पशुओं का नैसर्गिक जीवन छीन लेना और फिर दवा देकर उन्हें अधिक दूध उत्पादन को उत्तेजित करना निस्संदेह पशु क्रूरता अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। इस तरह लोगों की सेहत के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है। लोग अपने बच्चों को दूध और दुग्ध उत्पाद इस मकसद से देते हैं कि उन्हें उचित पोषण मिलेगा, मगर दवा देकर निकाले गए दूध से बीमारियों और विकृतियों की आशंका बढ़ जाती है।

कभी-कभार दूध में मिलावट करने वालों के खिलाफ तो सख्ती होती देखी जाती है, मगर पशुओं को हानिकारक दवाएं देकर दूध में जो जहर घोला जा रहा है, उस पर अभी तक गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस संबंध में कड़ाई दिखाते हुए उचित ही संबंधित महकमों को सतर्क रहने को कहा है। इससे शायद दुग्ध उत्पादकों में गलत तरीके से दूध पैदा करने की क्रूर कोशिशों पर कुछ लगाम लगेगी।

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